लहरि रूम : वैशाख मास केँ शुक्ल पक्ष केँ नवमी तिथि केँ जनकनंदनी प्रभु श्रीराम की प्राणप्रिया, सर्वमंगलदायिनी, पतिव्रताओं में शिरोमणि श्री सीता जी केँ प्राकट्य दिवस अछि | आई सोशल मीडिया पर 2 टा प्रश्न घुमि रहल अछि। पहिल माँ जानकी प्रकट नहि भेली अछि हुनक जन्म भेल छनि। निःसंदेह ई शोधक विषय अछि आओर एहि पर विद्वत जन लोकनिक शोध चलि रहल अछि। जे आंशिक जानकारी लहरि लग अछि ओ अपने ‘लहरि’ द्वारा प्रकाशित जानकी-जन्मक एक कथा ईहो : डॉ. भीमनाथ झा केँ पढ़ि सकैत छी। विद्वतजन केँ वाणी आ कथाक संग्राम सँ बाहर निकली त’ बुझना जाइत अछि माँ जानकी प्रकट भेल छथि।
दोसर प्रश्न चलि रहल अछि जे माँ जानकी केँ प्राकट्य दिवस जानकी नवमी कोन दिन। जखन समस्त मैथिल विश्वविद्यालय पंचांग केँ अनुसरण करैत छी त’ ओहि पंचांग केँ गणना अनुसार आंग्ल तिथिक अनुसार 17 मई केँ प्रातः उदय काल मे नवमी तिथि अछि। उदयातिथि नियमानुसार दिन भरि नवमी तिथि मान्य होयत। एहि बेर ई पाबनि 17 मई क’ मनाओल जाय त’ कोनो अनुचित नहि। ओना माँ जानकी जगदम्बा केँ ध्यान आओर पूजनक आयोजन जखन करबाक होई तखन करी। सबके पार लागेनिहार माँ जानकी छथि। एहि विषय केँ सोशल मीडिया पर देला सँ अपन सभहक विद्वतजन लोकनिक ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह लागि जाइत छनि।
माँ जानकी केँ स्मरण हेतु प्रस्तुत अछि
”श्री सीता चालीसा”
॥ दोहा ॥
”बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम, राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥
कीरति गाथा जो पढ़ें सुधरैं सगरे काम, मन मन्दिर बासा करें दुःख भंजन सिया राम” ॥
॥ चौपाई ॥
”राम प्रिया रघुपति रघुराई बैदेही की कीरत गाई ॥
चरण कमल बन्दों सिर नाई, सिय सुरसरि सब पाप नसाई ॥
जनक दुलारी राघव प्यारी, भरत लखन शत्रुहन वारी ॥
दिव्या धरा सों उपजी सीता, मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता ॥
सिया रूप भायो मनवा अति, रच्यो स्वयंवर जनक महीपति ॥
भारी शिव धनु खींचै जोई, सिय जयमाल साजिहैं सोई ॥
भूपति नरपति रावण संगा, नाहिं करि सके शिव धनु भंगा ॥
जनक निराश भए लखि कारन , जनम्यो नाहिं अवनिमोहि तारन ॥
यह सुन विश्वामित्र मुस्काए, राम लखन मुनि सीस नवाए ॥
आज्ञा पाई उठे रघुराई, इष्ट देव गुरु हियहिं मनाई ॥
जनक सुता गौरी सिर नावा, राम रूप उनके हिय भावा ॥
मारत पलक राम कर धनु लै, खंड खंड करि पटकिन भू पै ॥
जय जयकार हुई अति भारी, आनन्दित भए सबैं नर नारी ॥
सिय चली जयमाल सम्हाले, मुदित होय ग्रीवा में डाले ॥
मंगल बाज बजे चहुँ ओरा, परे राम संग सिया के फेरा ॥
लौटी बारात अवधपुर आई, तीनों मातु करैं नोराई ॥
कैकेई कनक भवन सिय दीन्हा, मातु सुमित्रा गोदहि लीन्हा ॥
कौशल्या सूत भेंट दियो सिय, हरख अपार हुए सीता हिय ॥
सब विधि बांटी बधाई, राजतिलक कई युक्ति सुनाई ॥
मंद मती मंथरा अडाइन, राम न भरत राजपद पाइन ॥
कैकेई कोप भवन मा गइली, वचन पति सों अपनेई गहिली ॥
चौदह बरस कोप बनवासा, भरत राजपद देहि दिलासा ॥
आज्ञा मानि चले रघुराई, संग जानकी लक्षमन भाई ॥
सिय श्री राम पथ पथ भटकैं , मृग मारीचि देखि मन अटकै ॥
राम गए माया मृग मारन, रावण साधु बन्यो सिय कारन ॥
भिक्षा कै मिस लै सिय भाग्यो, लंका जाई डरावन लाग्यो ॥
राम वियोग सों सिय अकुलानी, रावण सों कही कर्कश बानी ॥
हनुमान प्रभु लाए अंगूठी, सिय चूड़ामणि दिहिन अनूठी ॥
अष्ठसिद्धि नवनिधि वर पावा, महावीर सिय शीश नवावा ॥
सेतु बाँधी प्रभु लंका जीती, भक्त विभीषण सों करि प्रीती ॥
चढ़ि विमान सिय रघुपति आए, भरत भ्रात प्रभु चरण सुहाए ॥
अवध नरेश पाई राघव से, सिय महारानी देखि हिय हुलसे ॥
रजक बोल सुनी सिय बन भेजी, लखनलाल प्रभु बात सहेजी ॥
बाल्मीक मुनि आश्रय दीन्यो, लवकुश जन्म वहाँ पै लीन्हो ॥
विविध भाँती गुण शिक्षा दीन्हीं, दोनुह रामचरित रट लीन्ही ॥
लरिकल कै सुनि सुमधुर बानी,रामसिया सुत दुई पहिचानी ॥
भूलमानि सिय वापस लाए, राम जानकी सबहि सुहाए ॥
सती प्रमाणिकता केहि कारन, बसुंधरा सिय के हिय धारन ॥
अवनि सुता अवनी मां सोई, राम जानकी यही विधि खोई ॥
पतिव्रता मर्यादित माता, सीता सती नवावों माथा ॥
॥ दोहा ॥
जनकसुत अवनिधिया राम प्रिया लवमात,
चरणकमल जेहि उन बसै सीता सुमिरै प्रात”