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Friday, August 22, 2025
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श्रीराम वनगमन पथ : कल्याणी झा ‘कनक’

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श्रीराम वनगमन पथ

            श्री राम सु वनगमन पथ,    मातु देल आदेश।
            पुत्र शोक संतप्त बिकल , रघुकुल अवध नरेश ।।

        श्री रामचन्द्र जी, माता सीता आ भ्राता लक्ष्मण संग वनवास प्रस्थान करबाक लेल अपन पिता (राजा दशरथ) सँ आज्ञा लेबै लेल एलखिन। राजा दशरथ जी केँ आँखि मे नोर भरल छलैन आ मोन व्यथित रहैन। विधिक विधान केँ आगू विवश आ अपन वचन मे बाँधल दशरथ जी, प्रभु राम केँ आज्ञा दैत कहलखिन - "सुमंत जी राम संगहि जेथिन, आ राजमहलक पूर्ण व्यवस्थाक संग वन मे आनंद सँ जीवन गुजारथिन।" अहि बात पर कैकेयी अपन घमंड मे चूर कहलथिन - "साधु वेश मे राम, सीता आ लक्ष्मण तपस्वीक जीवन व्यतीत करता।" तखने दासी मंथरा संन्यासी केँ वस्त्र ल' क' पहुँच गेली। प्रभु राम माता केँ प्रणाम करि क' गेरुआ वस्त्र ल' लेलैथ। सीता आ लक्ष्मण सेहो अपन - अपन वस्त्र उठा लेलैनि । तपस्विनी भेष धारण करि सीता गुरु माँ केँ आज्ञा ल' अपन आभूषण उतारि लागलखिन। तखन गुरु माँ आदेश दैत कहलथिन - "आहाँ अहिबाती छी ।तै अपन आभूषण नई उतारू"। गुरु माँक आज्ञा केँ पालन करैत सीता अपन आभूषण धारण केने रहली।
         महल केँ बाहर समस्त अयोध्यावासी रामचन्द्र जीक वनवास पर बवाल मचैने छथिन। राम, सीता, लक्ष्मण तीनू गोटे सन्यासी भेष मे राजा दशरथक समक्ष ठाढ़ भ' गेलखिन ।तीनू गोटेकेँ सन्यासी भेष मे देखि कय राजा दशरथक कलेजा फाटै लगलईन। दशरथ जी सुकुमारी सीता सँ आग्रह केलखिन जे- "आहाँ ई कठोर वनवास पर नई जाऊ। अपन पिताक घर चलि जाऊ।" माता सीता विनय पूर्वक राजा सँ कहलखिन - "अपन प्रभु राम बिना हमर शरीर लाश सदृश्य रहत। ऐहन शरीर केँ हम की करबै।" दशरथ जी सुकुमारी सीता केँ कृतज्ञता सँ देखईत रहलखिन। आब रामचन्द्र जी केँ गुरुजी आशीर्वाद दईत कहलखिन "सूर्य के समान आहाँक कीर्ति चमकईत रहत।" माता-पिता आ गुरुजी केँ आशिर्वाद प्राप्त क' तीनू गोटे महल सँ प्रस्थान केलैनि। महलकेँ बाहर समस्त प्रजागण रामचन्द्र जी केँ देखिते हाहाकार करै लगलैन जे हम सब विद्रोह करब। प्रजा केँ रामचन्द्र जी बुझबै लगलखिन - "राजा दशरथ आहाँ सब केँ बेटा जकां मानै छथिन ।आहाँ सब हुनका पिता सन मान दियऊ। राइत मे सभ गोटे तमसा नदीक घाट पर आराम केलैन। भोरे अन्रौखे राम, लक्ष्मण, सीता सुमंत जी केँ संगे बिदा भ' गेलनि । सुमंत जी रथक किछु दूरी पर जाय क' रोइक देलखिन प्रभु राम -" किए रोकलऊ?"… सुमंत कहलखिन - "ऐत सँ कोसल देशक सीमा समाप्त होई छै।" रामचन्द्र जी रथ सँ उतरि क' मातृभूमि के प्रणाम केलैन आ कनि माइट अपना लग राइख लेलैन।
श्रृंगवेरपुर केँ सीमाक अंदर अबिते निषादराज रामचन्द्र जी सँ भेट करय एलखिन आ हुनका अपन राज्य मे राजा बनि क' रहय लेल आग्रह केलखिन। रामचन्द्र जी-" निषादराज, हम आहाँ केर राज्य मे नहि रहि सकैत छी।हम 14 वर्ष तक तपस्वीक वेश मे जंगल मे रहब। आहाँ हमरा गंगा पार करवा दिअ।" निषादराज केवट केँ बजाबै गेला। प्रभु राम सुमंत सँ अयोध्या लौटबाक आग्रह करैत कहलखिन - "आहाँ राज्यक महामंत्री छी। राजा दशरथ सँ कहबईन जे भरत केँ राज-पाट चलबै लेल कहथिन, आ कैकेयी जकां दूनू माताक मान करै लेल।" सुमंत जी अयोध्या बिदा भ' गेला। गंगा किनार पर ठाढ़ भ' क' प्रभु राम गंगा मईया केँ प्रणाम कयलनि आ, केवट केँ गंगा पार करबैक आग्रह केलखिन। केवट जखन जनला जे दशरथ पुत्र राम छथिन त' चरण पखारि केँ आग्रह करै लगलनि । चरण पखारबाक बाद माता सीता अँगूठी उतारि क' देलखिन त' केवट कहलखिन जे हम आहाँ सँ उतरन नई लेब। हम गंगा पार कराबै छी आ आहाँ भवसागर पार कराबै छी। आहाँक चरण पखारि क' हम भवसागर तरि गेलऊ।
            महल मे राजा दशरथ अत्यंत क्रोधित आ दुखित अवस्था मे कैकेयीक समक्ष ठाढ़ भ' क' अपन मंत्रणा सुना देलखिन -" आहाँ संग हमर आब कोनो संबंध नहि अछि। आई दिन सँ आहाँ अपना केर विधवा बुझू। हमर मरला पर भरत केर हमरा पाईन देबय को कोनो अधिकार नहि रहतई। दूनू रानी ऐहन बात सुनि क' कानैय लगलि मुदा राजा दुखित मोन कयने अपन कक्ष मे चलि गेला। दूनू रानी हुनकर पाछू-पाछू चईल गेली। गुरुजी आ गुरु माँ सेहो कनि काल ठाढ़ भेला केर बाद चलि गेलईन। कैकेयी कनैत असगर रहि गेली।
             गंगा पार कय तीनू गोटे किछु दूर चलि क' ब्रह्मऋषि भरद्वाज केँ आश्रम मे ऋषि केँ प्रणाम केलखिन। रामचन्द्र जी ऋषि केँ आग्रह पर कहलखिन - "आहाँक आश्रम सँ अयोध्या केर दूरी बहुत कम छैक । खबर लगितै सभ भेट करै आबय लगथिन आ आश्रमक शांति भंग भ' सकैत अछि । आहाँ हमरा कोनो सुरक्षित जगह बताऊ।" भरद्वाज ऋषि प्रभु केँ चित्रकूट जायक सलाह दैत कहलखिन - "ऋषि अत्रिक पत्नी तपस्विनी सती अनसूईया अपन प्रताप सँ गंगा केँ एकटा धार केँ एहि पर्वत पर लेलखिन, जे मंदाकिनी नदी गंगा छै। हुनका लग जाऊ। ओतय सँ आगूक मार्ग प्रशस्त होयत । "सती अनसूईया, सीता केँ गृहस्थ जीवनक सूत्र बुझेलखिन आ दिव्य आभूषण संग चमत्कारी वस्त्र जे कहियो मलिन नई हेतई, धारण करै लेल कहलखिन। ऋषि अत्रि प्रभु राम केँ समस्त संन्यासी आ ऋषि मुनि केँ राक्षसकेँ प्रकोप सँ बचाबै केर आग्रह केलखिन। तीनू गोटे संत महात्मा सँ भेट करईत हुनकर समृद्ध ज्ञान केर अपना मे समेटने आगू बढ़ईत रहला। आब अगस्त ऋषि केँ आश्रम मे पहुँच क' तीनू गोटे हुनका प्रणाम कयलनि । अगस्त ऋषि श्रीराम सँ कहलखिन - "हम अपन दिव्य दृष्टि सँ देख रहल छी, जे आहाँ केर अपन काज मे बहुत संघर्ष अछि। मुदा आहाँ कठिनाई केँ सामना करैत, अंतत:सफलता प्राप्त करब। अपन आशिर्वाद केँ संगहि ऋषि हुनका दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्रदान केलखिन। श्रीरामचंद्र जी सीता आ लक्ष्मण संग पंचवटी मे कुटी बना क' रहै लगला । जहाँ जटायु सँ भेट भेलैन आ शूर्पणखा केँ ओकर धृष्टता पर लक्ष्मण नाक काटि देलखिन। शूर्पणखा केँ कानैत देख खर-दूषण दूनू भाई राम-लक्ष्मण सँ युद्ध करै गेलई आ मृत्यु केँ प्राप्त भेल। ई खबर सुनि क' रावण क्रोध सँ तमतमै लागल । तखने शूर्पणखा माता सीता केँ सुंदरताक वर्णन करै लगली - "सीता सन सुंदर स्त्री केँ त' आहाँक महल मे रहबाक चाही। ओ सन्यासी भेष मे जंगल मे एक टा पर्ण कुटी मे रहि रहल छथि।" रावण मारीच केँ स्वर्ण मृग बनय केर आदेश देलकई आ मृग केँ सुंदरता पर मोहित सीता लेल प्रभु राम मृग केँ शिकार पर निकैल गेला। ओकर बाद रावण एक भिक्षु के रूप मे भीख मांगय आयल , आ माता सीता केँ लक्ष्मण रेखा पार करैते, छल सँ सीता केँ हरण करि क' ल' गेल। पुष्पक विमान मे सीता केर क्रंदन सुनि क' जटायु सीता केँ बचाबै केर भरसक कोशिश केलैन, मुदा रावण सँ जीत नई सकला आ घायल अवस्था मे जमीन पर खसि पड़ला। प्रभु राम व्याकुल सीता केँ ताकैत जटायुकेँ घायल अवस्था मे देखि अपन पांजरि में ल' क' सब हाल पूछय लगला ।
जटायु कहै लागल -
राम भेल माता हरण, दंभी दुष्ट लंकेश
माँ सीताक करुण कथा, रघुवर सँ कहे खगेश ।।
         ओकर बाद जटायु प्रभु राम सँ ई कहैत जे आहाँ मतंग ऋषि केँ आश्रम मे जाऊ। जहाँ शबरी सँ भेट हैत, आ अपन प्राण त्याग देलकई। जटायु केँ अंतिम संस्कार करि क' प्रभु राम, लक्ष्मण मतंग ऋषि के आश्रम पहुँचला। जहाँ शबरी प्रभु राम के देखिते भाव विह्वल भ' क' चरण पकड़ि लेलखिन। शबरी केँ अश्रु सँ प्रभु केँ चरण धोआ गेलईन । फेर कुशक आसन पर दूनू भाई केर बईसा कय मीठगर बेर खुआब लगलखिन।भक्त केँ प्रेमवश प्रभु शबरीक आइठ कयल बेर खेलखिन। शबरी केँ आग्रह पर प्रभु राम हुनका नवधा भक्ति सुनेलखिन। तत्पश्चात प्रभु केँ पंपा पर्वत लग सुग्रीव सँ भेट करै लेल कहलखिन ।प्रभु सँ आज्ञा ल' क' एक ज्योति पुंजक रूप में स्वर्ग सिधार गेली ।

दर्शन पावन राम-लखन, शबरी केर उद्धार।
खुआ क' मिट्ठा बेर प्रभु, करई छथिन मनुहार।।

          आब राम-लक्ष्मण सुग्रीव केँ  खोज मे ऋष्यमुख पर्वतक  तरफ बढ़य लगला। पंपा सरोवरक नजदीक पहुँचिते हनुमान जी पंडितक भेष मे हुनकर  परिचय बुझिते हनुमान प्रभु राम के चरण पर खैस पड़ला। ओकर बाद अपन दूनू कंधा पर राम-लक्ष्मण केँ  बैसा क' सुग्रीव लग ल' एलखिन। सुग्रीव सँ  प्रभु राम मित्रता कयलनि  आ मित्रताक परिणाम स्वरूप बाली केँ  मारि क' सुग्रीव केँ  राज्याभिषेक केलखिन। बाली जखन पूछलखिन - "हमरा आहाँ छल सँ कियै मारलऊ?" रामचन्द्र जी जवाब देलखिन - भगिनी, छोट भाई केँ  पत्नी, कन्या स्वरूप होइत अछि । ओहि  पर कुदृष्टि आ छोट भाई पर अन्याय केँ  कारण, आहाँ केँ  मारबाक  हमरा पाप नई लागत।" 
           चौमासक बाद किषकिन्धाक राजा सुग्रीव, हनुमान, जामवंत, युवराज अंगद, नल-नील आ वानर सेना मिल कय, राम-लक्ष्मण केँ  संग माता सीता केर खोज लेल विचार-विमर्श करै एक ठाम बैसार कयलनि । युवराज केँ  नेतृत्व मे राजा सुग्रीव केँ  आदेश पर पूरा वानर सेना सीताक खोज करबाक हेतु प्रस्थान  कयला  ।खोजैत-खोजैत पूरा वानर सेना दक्षिण केँ अंतिम छोर समुद्र किनार पर चिन्तित अवस्था मे ठाढ़ छला । किनको कोनो राह नहि देखबा मे  आबि रहल छलनि । तखन रीछ जामवंत हनुमान केँ  याद दियैलनि जे आहाँ अपन अतुलित बलक स्मरण करु। जे आहाँ केँ  देवता सँ प्राप्त भेल अछि। आहाँ केँ  पास वरदान अछि जे कोनो उपयुक्त काज लेल जखन शक्तिक स्मरण करौल जायत  त' आहाँ केँ अपन शक्तिक  भान होयत । हनुमानजी अपन शक्ति केँ  स्मरण कयलनि आओर  चारि सौ योजन समुद्र पार सीता केर खोज मे निकलि गेला । रास्ता मे सब बाधा केँ  पार करैत सोनाक लंका मे प्रवेश कयलनि । विभिषण सँ ज्ञात भेला पर हनुमान अशोक वाटिका मे सीता केँ  दुखित अवस्था मे देखि हुनकर मोन व्यथित भ' गेलैन ।तखने रावण आबि क' सीता केँ  बहुत तरह सँ परेशान करै लगलनि । रावण केँ  गेलाक बाद हनुमान सीताक समक्ष ठाढ़ प्रभु रामक द्वारा देल निशानी अँगूठी सीता केँ देखौलनि । सीता हनुमान केँ  अतुलित बल, अष्ट सिद्धि-नौ निधि केँ  आशिर्वाद देलखिन आब हनुमान जी अशोक वाटिका केर गाछ के तहस-नहस क' देलखिन। रावणक  आदेश पर मेघनाद हुनका बाँधि क' ल ऐलखिन, तकर बाद हुनकर पूँछ पर आईग लगा देल गेलनि । आब हनुमान अपन पूँछ केँ  बढ़ा क' पूरा लंका मे आगि लगा देलखिन। फेर सीताअपन चूड़ामनि उतारि क' हनुमान के दैत कहलखिन जे प्रभु सँ कहबईन जे अत्ते देरी कियै क' रहल छथिन ।आब हमरा सँ बर्दाश्त नहि  होइत अछि । हनुमान जी हुनका ढाढस बँधा क' प्रभु राम लग पहुँच गेला। सीता केर दु:ख सँ अवगत करा कय चूड़ामनी निकालि क' देलखिन ।
      किषिकन्धा केँ  राजा सुग्रीव आ समस्त वानर सेना केर संग राम-लक्ष्मण समुद्र किनार पर आबि गेला। इम्हर विभीषण जखन लंकेश केँ लंका केर कल्याण लेल, सीता माता केँ  रामचन्द्र जी लग आदर सहित पहुँचाबय कहलखिन त' दंभी रावण क्रोध मे आबि क' विभीषण केँ  अपन राज्य केर सीमा सँ बाहर जाय केँ  आदेश द' देलखिन । विभीषण प्रभु राम केँ  शरण मे आबि गेला। रामचन्द्र जी हुनका सहर्ष स्वीकार क' हुनक राज्याभिषेक कय देलखिन। नल-नील केर सहायता सँ समुद्र मे पुल बनौल गेल। रामचन्द्र जी रामेश्वरम धाम केँ  स्थापना केलैन। आ आशिर्वाद ल' क' समुद्र पार केलखिन। अंगद केँ  शांति दूत बना क' रावण लग पठाओल  गेल। मुदा रावण किनको बात सुनै लेल तैयार नहि  भेला। मंदोदरी सेहो अपना पति सँ  बहुत तरहक अनुनय-विनय केलैनि। मुदा अपन अहंकार मे चूर रावण पर कोनो असर नहि  पड़ल। अंत मे युद्ध केर घोषणा  कयल  गेल ।
         एहि  युद्ध मे रावणक वीर पराक्रम भाई, बेटा आ वीर योद्धा अपन प्राण गँवा देलनि । युद्ध भूमि मे लक्ष्मण के मूर्छित भेला पर प्रभु राम विलाप करै लगला। तखन पवनपुत्र हनुमान संजीवनी बूटी आईन क' लक्ष्मण केँ देलखिन, आ लक्ष्मण केर प्राणके रक्षा भेलनि । अंत मे विभीषणक सलाह पर, प्रभु श्रीराम केर बाण रावणक नाभी मे लगैत हुनक विशालकाय शरीर धरती पर अचेत अवस्था मे खसि पड़ल। प्रभु राम अपन छोट भाई लक्ष्मण केँ  कलहखिन जे अति बलशाली, पराक्रमी, महान पंडित रावण सँ  आहाँ शिक्षा ग्रहण करू । परम ज्ञानी रावण अचेत अवस्था मे लक्ष्मण केँ  ज्ञान देलखिन। रावण केर मृत्युक पश्चात विभीषण लंका केर राजा बनला। प्रभु रामचन्द्र जी, लक्ष्मण, सीता, हनुमान संग पुन:अयोध्या नगरी ऐला ।जहाँ पूरा नगरवासी हुनकर भव्य स्वागत केलखिन। अयोध्या केँ  राजा श्रीराम अपन माता, पत्नी, अनुज संग सुखी जीवन व्यतीत करै लगला। अयोध्याक समस्त प्रजा प्रभु श्रीरामचंद्र जी राजा बनला पर धन्य भेल। 

जय श्रीराम 🙏

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