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Friday, November 21, 2025
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Homeराजनीतिश्रीलंका सँ नेपाल तक पड़ोसीक संकट आ भारत के लेल सबक

श्रीलंका सँ नेपाल तक पड़ोसीक संकट आ भारत के लेल सबक

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जयसिंह रावत

हाल के वर्ष में, हमरा पड़ोसी देशसभ में बहुत देश राजनीतिक आ आर्थिक अस्थिरता सँ गुजरल अछि। श्रीलंका में आर्थिक संकटक कारण अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन भेल, जे सरकार केँ उखाड़ि देलक। एहिना, बांग्लादेश आ नेपाल में सेहो जनता केर असंतोष कई बेर सडक पर देखल गेल। ई सभ घटना, भले ओकर तत्काल कारण अलग-अलग भऽ सकैत अछि मुदा कहानी सभ ठाम एकै अछि। मतलब, जतय कुशासन, आर्थिक विषमता आ भ्रष्ट्राचार चरम पर रहैत अछि, ओतय जनता केर धैर्य जवाब दैत अछि।

ई क्रांति सभ आ जन आक्रोशक लहर सभ में भारत लेल एकटा गंभीर चेतावनी आ एक महत्वपूर्ण संदेश छिपल अछि। भारत एक मजबूत लोकतांत्रिक आ संवैधानिक व्यवस्था वाला देश अछि, मुदा एकर मतलब ई नहि जे हम एहि पड़ोसी सभक अनुभवक अनदेखी करी।

श्रीलंका के संकट एक ज्वलंत उदाहरण छै। दशक सभक कुशासन, विदेशी कर्ज पर अत्यधिक निर्भरता, आ राजपक्षे परिवारक नीतिसभ देशक अर्थव्यवस्था के तहस-नहस कऽ देलक। जतबा लोकक लेल बुनियादी जरूरत पुरा करब कठिन भऽ गेल, ओ सड़क पर उतरि आबि गेल। ई केवल आर्थिक संकट नै छल, बल्कि राजनीतिक असफलता केर परिणाम सेहो छल। एहि तरहेँ, बांग्लादेशमे राजनीतिक तनाव आ विरोध प्रदर्शन देखल गेल।

जनता के भीतर के असंतोष पूरा तरह खत्म नहि भेल अछि। नेपाल मे सेहो राजनीतिक अस्थिरता के इतिहास रहल अछि, जतय बारम्बार सरकार बदलैत रहल अछि। एहि सब जगह पर एक चीज समान अछिकृजनता अपन नेता सभ सँ जवाबदेही चाहैत अछि। ओ चाहैत छथि जे हुनकर जीवन के मुश्किल कम हो, न्याय भेटय आ भ्रष्टाचार समाप्त होअय।

ई सत्य अछि जे भारतक लोकतंत्र आ प्रशासनिक ढाँचा बहुत मजबूत अछि। हमरालग स्वतंत्र न्यायपालिका, एक जीवंत मीडिया आ मजबुत संवैधानिक व्यवस्था अछि, मुदा हमरा सभ केँ आत्मसंतुष्ट नहि होयबाक चाही। जे समस्यासभ हमर पड़ोसीसभ केँ संकटमे पडलनि, तकर जड़ हमर अपन समाजमे सेहो मौजूद अछि।

भ्रष्टाचार भारत में एक पैघ समस्या बनल अछि। छोट-बड़ सब काजक लेल घूस देबाक मजबूरी आजहुँ आम आदमीक जीवनक हिस्सा अछि। न्याय तक पहुँच एक आर पैघ चुनौती अछि। अदालत सभ में लाखों मामला लंबित अछि, आ न्यायक प्रक्रिया एतेक धीमा अछि जे कई बेर न्याय भेटय में बहुत देरी भऽ जाइत अछि। ई आम लोक सभ में व्यवस्था प्रति अविश्वास उत्पन्न करैत अछि।

एकर अलावा, आर्थिक असमानता लगातार बढ़ि रहल अछि। एक दिस देश मे खरबपति सभक संख्या बढ़ि रहल अछि, त दोसर दिस लाखों लोक गरीबी रेखा क नीचा जीवन यापन क रहल छथि। शिक्षा, स्वास्थ्य आ रोजगार क अवसर मे सेहो गहिर असमानता अछि। ई असमानता एक विस्फोटक स्थिति पैदा क सकैत अछि, विशेष क कश् जखन युवा वर्ग क भविष्य धुँधला लगय लगैत अछि।

श्रीलंका, बांग्लादेश आ नेपालक घटनासँ हमरा ई शिक्षा भेटैत अछि जे जनता केर धैर्य असिमित नै होइत अछि। अगर हम एहि समस्यासभ केँ नजरअंदाज करैत रहब, तँ हमरा मजबूत संस्थानसभ पर सेहो प्रश्न उठि सकैत अछि। भारत केँ त्वरित आत्ममंथन केर आवश्यकता अछि। ई आत्ममंथन केवल राजनीतिक स्तर पर नहि, बल्कि प्रशासनिक आ सामाजिक स्तर पर सेहो होबाक चाही। हमरा बुझबाक चाही जे जनता केँ केवल नारा आ वादा नहि, बल्कि ठोस परिणाम चाही।की कएल जा सकैत अछि?

यदि एक पूर्णवृति नहि चाहि रहल छी तऽ किछ उपाय करै परत। माने, भ्रष्टाचार के जड़ सऽ समाप्त करबाक लेल कठोर कानून आ हुनकर प्रभावकारी क्रियान्वयन जरूरी अछि। न्यायपालिका के कार्यप्रणाली में सुधार कऽ कऽ लंबित मामिलासभ के तेजी सऽ निपटान करऽ पड़त। समावेशी विकास पर जोर देबाक होयत जाहि सऽ आर्थिक लाभ केवल किछु लोक तक सीमित नहि रहय। सभ के शिक्षा, स्वास्थ्य आ रोजगार में समान अवसर भेटबाक चाही।

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